चिरायता (सुआर्शिया चिरायता)
चिरायता (सुआर्शिया चिरायता)
इसका कारण बताते हुए डॉ. खोरी कहते हैं कि यह मूलतः इसके शरीर की जीवाणुरोधी शक्ति बढ़ाने वाली सामर्थ्य के कारण है न कि मारक प्रभावों के कारण । श्री खगेन्द्रनाथ वसु के अनुसार प्रातः काल खाली पेट लिया गया चिरायते का काढ़ा या चूर्ण (चिरायता भिगाया जल मिश्री के साथ) लेने से उदरस्थ कृमि तुरंत समाप्त हो जाते हैं । एक माह तक ऐसा करने पर कुछ रोग भी समूल नष्ट हो जाता है । डॉ. प्रसाद बनर्जी की 'मटेरिया मेडीका ऑफ इण्डियन ड्रग्स' के अनुसार चिरायता इन्फ्लुएंजा, मलेरिया और टॉयफाइड जैसे अलग-अलग कारणें से होने वाले ज्वरों में समान रूप से लाभकारी है ।
होम्योपैथी में चिरायते की उपयोगिता ज्वर निवारण हेतु सर्वप्रथम डॉ. कालीकुमार भट्टाचार्य जी ने प्रतिपादित की । श्री घोष अपनी पुस्तक 'ड्रग्स ऑफ हिन्दुस्तान' में लिखते हैं कि चिरायता नए (एक्यूट) और पुराने (क्रांनिक) दोनों ही प्रकार के ज्वरों को मिटाता है । नए वे जो विषाणु या मलेरिया पेरासाइटजन्य होते हैं । पुराने जीर्ण ज्वर बहुधा कमजोर लोगों में जड़ जमाए बैठे घातक जीवाणुओं के कारण होते हैं । आँखों में जलन के साथ दोपहर के बाद चढ़ने वाले तेज बुखार के लिए होम्योपैथी वैद्य चिरायता ही प्रयुक्त करते हैं । कालाजार नामक जीर्ण ज्वर रोग में जिसमें लीवर तथा स्प्लीन दोनों बढ़ जाते हैं, चिरायता चमत्कारी प्रभाव दिखाता है । इसका मदर टिंक्चर एक और तीन एक्स की पोटेन्सी में होम्योपैथी में प्रयुक्त होता है ।
यूनानी में चिरायता को दूसरे दर्जे में गर्म और खुश्क माना गया है । इसका ज्वर निवारण के रूप में उपयोग प्रसिद्ध है । विशेष कर यह पुराने ज्वरों में लाभ करता है । हकीम दलजीतसिंह के अनुसार जीर्ण ज्वर के साथ अपच व शरीर में दाह हो तथा ज्वर कम होते हुए भी सामान्य को कभी वह छूता हो चिरायता तुरंत लाभ करता है ।
ग्राह्य अंग-
इसका पंचांग व पुष्प प्रवृत्त होते हैं फिर भी जड़काण्ड सर्वाधिक गुण युक्त होते हैं । इसका क्वाथ या चूर्ण किसी मधुर वाहक के साथ अनुपान भेदानुसार लेते हैं ।
मात्रा-
क्वाथ-50 से 100 मिलीलीटर दिन में दो बार विभाजित कर । चूर्ण एक से तीन ग्राम ।
उपयोग-
ज्वर निवारण हेतु 3 ग्राम चिरायता 20 ग्राम जल में भिगोकर, रात भर रखकर प्रातः छान लेते हैं तथा 5 ग्राम दिन में दो बार मधु के साथ लेते हैं । चिरायते का फाण्ट भी सामान्य दुर्बलता निवारण हेतु अन्य औषधियों के अलावा क्षुधावृद्धि तथा आहार पाक हेतु दिया जाता है ।
चिरायते का काढ़ा एक सेर औंस की मात्रा में मलेरिया ज्वर में तुरंत लाभ पहुँचाता है । लीवर प्लीहा पर इसका प्रभाव सीधा पड़ता है व ज्वर मिटाकर यह दौर्बल्य को भी दूर करता है । कृमि रोग कुष्ठ, वैसीलिमिया, वायरीमिया सभी में इसकी क्रिया तुरंत होती है । यह त्रिदोष निवारक है अतः बिना किसी न नुनच के प्रयुक्त हो सकता है ।
अन्य उपयोग-संस्थानिक बाह्य उपयोग के रूप में यह व्रणों को धोने, अग्निमंदता, अजीर्ण, यकृत विकारों में आंतरिक प्रयोगों के रूप में, रक्त विकार उदर तथा रक्त कृमियों के निवारणार्थ, शोथ एवं ज्वर के बाद की दुर्बलता हेतु भी प्रयुक्त होता है । इसे एक उत्तम सात्मीकरण स्थापित करने वाला टॉनिक भी माना गया है ।
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