नीलगिरी वृक्ष और उसका महत्व Eucalyptus tree and its importance
नीलगिरी वृक्ष
यूकेलिप्टस (Eucalyptus) मिर्टेसी (Myrtaceae) कुल का एक बहुत ऊँचा वृक्ष हैं। इसकी लगभग 600 जातियाँ हैं, जो अधिकांशत: आस्ट्रेलिया और टैस्मानिया में पाई जाति हैं। यूकेलिप्टस रेंगनेस (Eucalyptus regnas) इनमें सबसे ऊँची जाति हैं, जिसके वृक्ष 322 फुट तक ऊँचे होते हैं। उपयोगिता के कारण यूकेलिप्टस अब अमरीका, यूरोप, अफ्रीका एवं भारत में बहुतायतश् से उगाया जा रहा है। बीज नरम, उपजाऊ भूमि में सिंचाई करके बो दिया जाता है। कुछ वर्ष बाद छोटे छोटे पौधों को सावधानी से निकालकर, जंगलों में लगा दिया जाता है। ऐसे समय जड़ों की पूरी देखभाल करनी पड़ती है, अन्यथा थोड़ी असावधानी से ही उनकी जड़े नष्ट हो जाती हैं। इसके कारण पौधे सूख जाते हैं। दक्षिण भारत में नीलगिरि पर्वत पर यूकेलिप्टस ग्लोबूलस (Eucalyptus globulus) जातिवाला वृक्ष बाहर से मँगाकर लगाया गया है। इस स्थान पर यह बहुत अच्छा उगता है और काफी ऊँचे ऊँचे वृक्ष के जंगल तैयार हो गए हैं। ऊँचे वृक्ष से अच्छे प्रकार की इमारती लकड़ी प्राप्त होती है, जो जहाज बनाने, इमारती खंभे, अथवा सस्ते फर्नीचर के बनाने में काम आती है। इसकी पत्तियों से एक श्ध्रीा उड़नेवाला तेल, यूकेलिप्टस तेल, निकाला जाता है, जो गले, नाक, गुद्रे तथा पेट की बीमारियों, या सर्दी जुकाम में ओषधि के रूप में प्रयुक्त होता है। इस वृक्ष से एक प्रकर का गोंद भी प्राप्त होता है। पेड़श् की छाल कागज बनाने और चमड़ा बनाने के काम में आती है।
नीलगिरी की ताजा पत्तियों को तोड़कर इससे तेल बनाया जाता है जो विभिन्न रोगों के उपचार में काम आता है। इन पत्तियों से डिस्टीलेशन की प्रक्रिया द्वारा तेल निकालने का काम होता है। इस प्रक्रिया के बाद रंगहीन द्रव्य (तेल) प्राप्त होता है जिसमें किसी भी प्रकार का स्वाद नहीं होता। इस तेल की सबसे बडी विशेषता यह है कि यह केवल अल्कोहल में घुलनशीन होता है। नीलगिरी तेल का प्रयोग एक एंटीसेप्टिक और उत्तेजक औषधि के रूप में किया जाता है। यह हृदय गति को बढाने में मदद करता है। नीलगिरी का तेल जितना पुराना होता जाता है इसका असर और भी बढता जाता है। यह काफी हद तक मलेरिया रोग के उपचार में भी काम में आता है। गले में दर्द होने पर भी नीलगिरी के तेल का उपयोग किया जाता है।
इसके लंबे तने को बल्लियां और टिम्बर के लिए उपयोग किया जाता है।
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